Kaash – A poem by Shruti

काश मैं वो चांद होता जिसे छूने को वो अटल हो सके,
काश मैं वो फूल होता जिसकी खुशबू सांसों में बस सके,
काश मैं वो भूल होता, जिसे कभी भूलाया ना जा सके,
काश मैं वो तस्वीर होता, जिसे देख नजर ना भर सके,
काश मैं वो नजर होता, जो एक बार में दिल तक उतर सके,
काश मैं वो दिल होता, जिसकी धड़कन थम ना सके,
काश मै वो हुनर होता, जो पल पल दिखलाई पड़ता,
काश मैं वो डगर होता, जो खुद में अपनी मंज़िल होता,
काश मैं वो रहस्य होता, जो सब जान सकें, 
काश मैं वो ऐतबार होता, जो हर किसी पे हो सके,
काश मैं वो सामान होता, जो अनमोल हो,
काश मैं वो हिसाब होता, जिसका ना कोई तौल हो,
काश मै वो खुमार होता, जिस से हर पल सजाया जा सके,
काश मैं वो प्यार होता, जिसे खामोशी में भी समझा जा सके,
काश मैं वो बचपन होता, जिसे ताउम्र जिंदा रख सके,
काश मैं वो दर्द होता, जो दूसरों का हमदर्द बन सके,
काश मैं वो विश्वास होता, जो अंधकार में भी दिख सके,
काश मैं वो बल होता, जो कमजोर की ताकत बन सके,
काश मैं वो सवाल होता, जिसे एक जवाब ही पूर्ण कर सके,
काश मैं वो जवाब होता, जिसे सुनने का दिल करे,
काश मैं वो एहसास होता, जो संतुष्टि को पूर्ण कर सके,
काश मैं वो वजूद होता, जिसके होने पर फख्र हो सके,
काश मैं वो सांस होता, जिससे जीवन संवर सके
काश मैं वो लिबास होता, जिसे पहन के जग झूम सके,   
काश मैं वो खुशी होता, जो जीने की डगर बन सके,
काश मैं वो स्वर होता, जिसे सुनने से तृप्ति हो सके,
काश मैं वो मुकुंद होता, जो संसार को वरदान हो,
काश मैं वो संसार होता, जो सबके लिए एक सामान हो,
काश मैं वो इंसान होता, जो बस एक इंसान हो।
काश…

श्रुति

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