मैंने देखा है
मैंने देखा है दिन को सांझ होते हुए, मैंने देखा है, कली को फूल बनते हुए, मैंने देखा है, राह चलते मंजिल मिलते हुए, मैंने देखा है, इक्त्फाक होते हुए, वो बिन मौसम बरसात,...
नारी – Naari
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नारी हूं,और नर पहले,सफल हूं अपनी परिभाषा में,संतुष्ट भी साकार किए हुए सपनों में।टूटती हूं और चकनाचूर हो जाती हूं,खुद को समेट लेती हूं, अचंभा हो जाती हूं।संक्षेप हूं और विस्तार भी,कश्ती हूं और तूफान भी,बिखरती हूं...
हम काले क्यूं है?
Hum Kaale Kyun Hain ? By Shruti Bhargava, Maine Dekha Hai
हम काले क्यूं है? सात रंगों के इन्द्रधनुष को देख,मुस्कुराहट कान से कान तक बंध जाती है,बारिश और सूरज की किरणों का जादू, सतरंगी एहसास जगाती है।कभी सोचा है,कि...
ख्वाइशें – Khwaishein
हकीकत जैसी भी हो,ख्वाब अद्भुत है। इन ख्वाबों से कहो,मेरी ख्वाइशों से रोज़ मिला करें,जैसे ही पूरी होती है,बदल जाती हैं। बदलती है, अपने रूप,अपने आकार में,अपनी खुशबू में,अपने आकाश में,फिर भी मेरी ही है,बेहद अपनी सी है।बदलती...
Maa – माँ
Hello की tone से समझ जाती है, मेरे मन की खलबली को, चुप रहूं, तो भाप लेती है, मेरे दिल में उभर रही तरंगों को,ऊंची आवाज़ में मैं कभी जो बोल देती हूं उससे, समझ जाती...
काश – Kaash
Kaash - A poem by Shruti
काश मैं वो चांद होता जिसे छूने को वो अटल हो सके, काश मैं वो फूल होता जिसकी खुशबू सांसों में बस सके, काश मैं वो भूल होता, जिसे कभी...
Hai Magar – है मगर
है मगर, मुझसा दिखता तो है,पर मैं मुझसे कहीं खो गया है।है मगर,देखता सब कुछ है,मेहसूस भी करता है,पर मुझमें से मैं खो गया है।है मगर,सही राह चल रहा है,पर वो खास राह कहीं खो गया है।है मगर,कई...
ये आँखें देखना चाहती हैं – Ye Aankhein Dekhna Chahti Hain
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रात को सोते वक़्त, अंधेरे कमरे में,जब आंखे जागती है,ख्याल इतने होते है,अपनी अपनी खुशी तराशती है। किसी को सोते वक़्त अगले दिन का नाश्ता क्या होगा ?ये ख्याल आता है,कोई कल सुबह तक भूक से मर ना...
आज़ादी
आज़ादी का चर्चा हुआ है आज , हम आज़ाद हैं, हर दिल कह कर झूमा है आज , जो की जाट पात की बेड़ियों से उलझे हमारे कदम रुकते हैं आज भी, तुम इस...
Agar – अगर
अगर हो कोई वो कोशिश, जो करने में चूक गए हैं हम,अगर हो कोई गुज़ारिश,जो ज़ाहिर न कर पाये हैं हम,अगर कोई कसर रह गयी हो हमसे,इस वक़्त को बेहतर बनाने में,अगर हो कोई वो वादा,जो भूल...
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