चलो खामोश रहने का खेल खेलते हैं, 
हर लव्ज़ को कैद होने देते हैं,
एक दूजे से ना कह कर मन की बात,
मन को दबोच लेते हैं।

खामोश रहने से शायद हमारे बीच का बैर दोस्ती में बदल जाये,
खामोश रहने से शायद अनकही बात समझ आ जाये,
कब तक ये आलम बरक़रार रख पायेगें हम, 
एक दिन तो लब्जों का हुनर जताएंगे हम,

ख़ामोशी रास आती तो अब तक लगी आग शांत हो जाती,
कि शोलों सी भड़कती है ये, लब्जों के इंतज़ार में। 

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