आज बारिश का नया रूप देखा,
कुछ अलग नहीं था, पर क्या खूब देखा,
पत्तों की हरी मुस्कराहट झूमती हुई,
झिम झिम करती आवाज़ धरती की गोद कर चूमती हुई।

बचपन के कदम, मस्ती में बढ़ते हुए,
कुछ और नहीं तो माटी से एक दूजे को रंगते हुए,
बचपन की एक याद चली आई,
कागज़ की कश्ती को बारिश के पानी में बहाने की तयारी मन ही मन मुस्कुरायी 

छतरी की छाया में, भीग न जाने से बचते बचते – मैं चली,
भीगती हवा ने छतरी की डोर खीच ली,
उन तेज़ बूंदों में भीगते हुए, एक अनोखा एहसास हुआ,
छोटी छोटी बातें हो या अनुभव,”कभी कभी असीम ख़ुशी दे जाते हैं”,
खुद को खुश करने का हुनर जगा जाते हैं।

भीगा सा मौसम,
भीगा सा मन,
भीगी सी है, खुश रहने की उमंग 

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