Poetry Series :- Poem – Part 7- Ye Aankhein Dekhna Chaahti Hain ;कविता – पार्र- ७ – ये आँखें देखना चाहती हैं। 🙂

Hope you are staying safe and healthy.During the lockdown we tend to have innumerable thoughts, those thoughts and wishes are being comunicated through this poem.Subject- "ये आँखें देखना चाहती हैं।" Let us value what we have. And feel priveledged that you own it. Hope you like these lines and look forward for a new world. Naya Zamana dekhne ki chah me,Shruti#Poetry #PoeminHindi #Lockdown #Corona #Lockdownwishes #Hope

Posted by Maine Dekha Hai on Friday, 22 May 2020

रात को सोते वक़्त, अंधेरे कमरे में,
जब आंखे जागती है,
ख्याल इतने होते है,
अपनी अपनी खुशी तराशती है। 
किसी को सोते वक़्त अगले दिन का नाश्ता क्या होगा ?
ये ख्याल आता है,
कोई कल सुबह तक भूक से मर ना जाए,
ये डर सताता है।

किसी की आंखें घर बैठे दिन भर न्यूज चैनल की खबरों से रूबरू होती है,
किसी की आंखें घर का रास्ता तय कर पाने का जज्बा खोजती है। 
कोई अपनों को चार दिवारी में देख देख थक चुका है,
कोई अपनों को देखने के लिए तरस रहा है। 

कोई work from home ke के stress से परेशान है
कोई थोड़ा काम मिल जाए, इस उम्मीद में मेहरबान है। 
किसी का वक़्त काटे नहीं कट रहा,
किसी का बेवक्त सड़को पे दम निकल रहा। 
किसी के हर पल में डर है,
और कोशिश कर रहा है मुस्कुराने की,
कोई बेकौफ हो कर,
हर पल वायरस को मात दिए का रहा है। 

कोई दूरियों में करीब होने का एहसास लिए है,
कोई करीब होने के एहसास को बस, समेटे हुए है।
किसी की आंखें social distancing को अन्जाम  देते देख रही है,
किसी की आंखें ऐसे किस्मत को तरस रही है,
किसी की आंखें नहीं समझ पाती मन के तूफान को, 
किसी की कुछ मिनटों की वीडियो कॉल, ज़ाहिर का देती है, पूरी दास्तां  को। 

Back to normal नहीं जाना चाहती है ये आंखें,
नया जमाना देखना चाहती है ये आंखें,
उस जमाने में जिसमें खेती प्रथम हो,
बागवानी बेस्ट hobby हो,
जो खारकानो पे  रोक लगाए,
जहां सावस्थ ही सफलता का हिसाब हो,
जहां इंसानियत से बड़ा ना कोई धर्म य जात हो,
जहां बेफिक्र हो, आज़ाद भी
कोई खाने को ना तरसे एक रात भी,
कर्म ही पूजा हो,
और खुद पे भरोसा हो। 

ये आंखें देखना चाहती है,
वो हंसी जो गूंजे दूर तलक,
वो बोली कि चाशनी भी फीकी पड़ जाए,
वो प्रकृति से प्यार की धरती को इंसान पे ऐतबार हो,
वो इंसानियत, जिसपे इंसान को खुद पे नाज़ हो। 

नए ज़माने की ओर ,
श्रुति

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