
यूंही तो नहीं उठकर वो चल दिया होगा
सब छोड़कर पीछे किस तरह जिया होगा
सोया होगा जब रात को ओढ़ कर ख़ामोशी वो
हजारों सवाल सूखी आंखों ने पिया होगा
एड़ियां रगड़ते हुए बंजर रास्तों के सफर ने
कुछ ज़ख्म तो उसके रूह को भी दिया होगा
सोचती हूं , क्यों पलट कर पूछता नहीं वो अपने दर्द का सबब
कैसी मजबूरियों ने उसके होठों को यूं सिया होगा
यूंही तो नहीं उठकर वो चल दिया होगा….
——प्रांशु