आज़ादी
आज़ादी का चर्चा हुआ है आज , हम आज़ाद हैं, हर दिल कह कर झूमा है आज , जो की जाट पात की बेड़ियों से उलझे हमारे कदम रुकते हैं आज भी, तुम इस...
Tum Tumhare Ho!
अगर बेताबियों के साथ हर पल गुज़रता है, अगर किसी के ना होने का दर्द तुम्हे भी होता है, अगर कुछ कर गुजरने का जज़्बा रखते हो तुम, अगर सच कहने से नहीं...
हम काले क्यूं है?
Hum Kaale Kyun Hain ? By Shruti Bhargava, Maine Dekha Hai
हम काले क्यूं है? सात रंगों के इन्द्रधनुष को देख,मुस्कुराहट कान से कान तक बंध जाती है,बारिश और सूरज की किरणों का जादू, सतरंगी एहसास जगाती है।कभी सोचा है,कि...
काश – Kaash
Kaash - A poem by Shruti
काश मैं वो चांद होता जिसे छूने को वो अटल हो सके, काश मैं वो फूल होता जिसकी खुशबू सांसों में बस सके, काश मैं वो भूल होता, जिसे कभी...
ख्वाइशें – Khwaishein
हकीकत जैसी भी हो,ख्वाब अद्भुत है। इन ख्वाबों से कहो,मेरी ख्वाइशों से रोज़ मिला करें,जैसे ही पूरी होती है,बदल जाती हैं। बदलती है, अपने रूप,अपने आकार में,अपनी खुशबू में,अपने आकाश में,फिर भी मेरी ही है,बेहद अपनी सी है।बदलती...
नारी – Naari
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नारी हूं,और नर पहले,सफल हूं अपनी परिभाषा में,संतुष्ट भी साकार किए हुए सपनों में।टूटती हूं और चकनाचूर हो जाती हूं,खुद को समेट लेती हूं, अचंभा हो जाती हूं।संक्षेप हूं और विस्तार भी,कश्ती हूं और तूफान भी,बिखरती हूं...
ये आँखें देखना चाहती हैं – Ye Aankhein Dekhna Chahti Hain
https://www.facebook.com/mainedekhahai/videos/260385878441532/
रात को सोते वक़्त, अंधेरे कमरे में,जब आंखे जागती है,ख्याल इतने होते है,अपनी अपनी खुशी तराशती है। किसी को सोते वक़्त अगले दिन का नाश्ता क्या होगा ?ये ख्याल आता है,कोई कल सुबह तक भूक से मर ना...
Hai Magar – है मगर
है मगर, मुझसा दिखता तो है,पर मैं मुझसे कहीं खो गया है।है मगर,देखता सब कुछ है,मेहसूस भी करता है,पर मुझमें से मैं खो गया है।है मगर,सही राह चल रहा है,पर वो खास राह कहीं खो गया है।है मगर,कई...
Lockdown, Quarantine, Hum, Ghar aur Corona Warriors- Sandesh
Who could have thought that such time would come when human beings would be caged in their own cage, by themselves. An invisible virus would make us realize each moment lived that far, sometimes with full awareness...
Maa – माँ
Hello की tone से समझ जाती है, मेरे मन की खलबली को, चुप रहूं, तो भाप लेती है, मेरे दिल में उभर रही तरंगों को,ऊंची आवाज़ में मैं कभी जो बोल देती हूं उससे, समझ जाती...
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